बस्ती। ‘शिक्षित बनो, संगठित बनों और संघर्ष करो’ के नारे से दलित समाज को आशा और विश्वास दिलाने वाले डॉ. भीमराव अम्बेडकर शोषित, वंचित और तिरस्कृत दलितों के उत्थान के लिए सदैव संघर्ष करते रहे। उनका जीवन समाज को हमेशा बल प्रदान करता रहेगा और देश को समाजिक समरसता का सन्देश देता रहेगा। यह विचार आज स्वामी दयानंद विद्यालय सुर्तीहट्टा बस्ती में आयोजित बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की जयन्ती के अवसर पर प्रधानाध्यापक आदित्य नारायण गिरि ने बच्चों को दिया। इससे पूर्व बच्चों और शिक्षकों ने उनके चित्र पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पण करते हुए उनके व्यक्तित्व को याद किया।
इस अवसर पर बोलते हुए शिक्षक दिनेश मौर्य ने बताया कि, जब लोग आर्यों को विदेशी बता रहे थे तब अम्बेडकर ही थे जिन्होंने आर्यों को भारत का मूलनिवासी घोषित किया और नेहरू का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया पर झुके नहीं। बाबा साहेब ने संघर्ष का बिगुल बजाकर आह्वान किया,‘छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते,अधिकार वसूल करना होता है।‘ उन्होंने ने कहा है, ‘हिन्दुत्व की गौरव वृद्धि में वशिष्ठ जैसे ब्राह्मण, राम जैसे क्षत्रिय, हर्ष की तरह वैश्य और तुकाराम जैसे शूद्र लोगों ने अपनी साधना का प्रतिफल जोड़ा है।
“उनका हिन्दुत्व दीवारों में घिरा हुआ नहीं है, बल्कि ग्रहिष्णु, सहिष्णु व चलिष्णु है”।
शिक्षिका अनीशा पाण्डेय ने बताया कि, डॉ. बाबा साहब अंबेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आन्दोलन को प्रेरित किया और अछूतों दलितों से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था, और श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। वे भारत के लिए सदा आदर्श रहेंगे।
अरविन्द श्रीवास्तव ने उन्हें खेती मे आधुनिकीकरण करने के लिए याद किया और विषमुक्त खेती की प्रेरणा देने वाला बताया।
इस अवसर पर बच्चों ने अपनी मौलिक रचनाएं प्रस्तूत कीं। कार्यक्रम में मुख्य रूप से गरुड़ध्वज पांडे, नितेश कुमार, अन्शिका पाण्डेय, रुपा, श्रेया, साक्षी, वंदना, दीपलक्ष्मी, राधा देवी, रामरती सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।