यूँ तो आजादी 15अगस्त 1947 को पूरी आजादी मिली थी पर इससे पूर्व 30जनवरी 1943 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने देश के एक भूभाग पोर्टब्लेयर को अंग्रेजों से मुक्त कर वहाँ पूरी शासन सत्ता स्थापित की थी। उसी प्रथम स्वतंत्रता दिवस को बस्ती जिले के रुधौली तहसील के कुचुरूआ ग्रामवासियों ने अखण्ड रामचरित मानस पाठ व समरसता भोज आयोजित कर अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया। इस उत्सव की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि पूरे गाँव के सभी लोगों ने एक भण्डारे का महाप्रसाद ग्रहण किया। गाँव के कुल पुरोहित पंडित ब्रह्मदेव चतुर्वेदी के नेतृत्व में इस उत्सव का आयोजन किया गया।
समापन के अवसर पर वैदिक यज्ञ कर ग्रामवासियों के कल्याण की कामना करते हुए रामायणी पण्डित देवेन्द्र चतुर्वेदी ने कहा कि हमारा दुर्भाग्य है कि देश की आजादी के वास्तव मे जो महानायक थे उन अधिकांश वीरों के देश प्रेम, अमर बलिदान, साहस, शौर्य और त्याग, तप को देश भुला बैठा।जिनके जीवन का एक मात्र उद्देश्य था केवल आजादी था। उन के मन, मस्तिष्क, ह्रदय में आजादी के सिवाय और व्यर्थ की बातों के लिए कोई स्थान ही नहीं था। उन वीर सपूतों के प्राणों की आहुतियां, उग्रता और देश प्रेम के सपनों को साकार करने की दृढ प्रतिज्ञा को देख अंग्रेजों ने तो १९४७ के पूर्व ही अपने बोरे बिस्तर बांध कर भाग जाने की तैयारी कर ली थी ! लेकिन अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले उन देश के वीरों की देश के प्रति अर्पित की गई आराधना को इतिहास में जो प्रसिद्धि, सम्मान मिलना चाहिए था वह मिल न सका।
30जनवरी सन १९४३ को स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर में भारत की आजादी का झंडा लहराया था और आजाद हिन्द सरकार का गठन किया था । आज हमें उन के साहस और शौर्य को नमन करना चाहिए। पण्डित ब्रह्मदेव चतुर्वेदी ने इस महोत्सव में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगी सभी लोगों का हृदय से आभार व्यक्त करते हुए इस महोत्सव को प्रतिवर्ष मनाने की प्रतिबद्धता जताई।