
उत्तर प्रदेश के सुप्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर में विख्यात एक माह का खिचड़ी मेला लगता है। बाबा गोरखनाथ ने खिचड़ी बनाने की परंपरा शुरू की थी। इसके पीछे एक रोचक कथानक है।
अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नही मिल पाता था। भूखे रहने के कारण उनके शरीर कमजोर हो रहे थे, दुश्मन का मुक़ाबला नही कर पा रहे थे। इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था। इससे शरीर को तुरंत ऊर्जा भी मिलती थी। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा।
खिचड़ी से भोजन की समस्या का समाधान हो जाने पर नाथ योगियों ने खिलजी की सेना को हरा दिया। तभी से खिचड़ी मेला आरंभ हो गया। इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस खिचड़ी पर्व में भारत के अलावा नेपाल से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी हजारों में होती है।