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JEE-NEET डरते हुए परीक्षा देने को मजबूर छात्रों का दर्द

इंजीरियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई में दाखिले के लिए आईआईटी-जेईई और नीट परीक्षा अपने तय समय पर होने जा रही है. राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) की ओर से निर्धारित समय के मुताबिक़ नीट की परीक्षा 13 सितंबर और जेईई की परीक्षा 1 से 6 सितंबर के बीच होनी तय है.
लाखों छात्र कोरोना महामारी और बाढ़ की वजह से इन परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग कर रहे हैं, जिसे ख़ारिज किया जा चुका है. छात्र परीक्षा स्थगित कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका डाल चुके हैं लेकिन वहाँ भी उनकी याचिका ख़ारिज की जा चुकी है.
इन परीक्षाओं को आयोजित करने को लेकर विवाद अब भी जारी है और कई विपक्षी दल परीक्षाओं की तारीख़ आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.
देश के अलग-अलग हिस्सों में हमारे सहयोगियों ने छात्रों से बात कर यह जानने की कोशिश की है कि इन परिस्थितियों में परीक्षा देने वाले छात्र-छात्राएँ किन मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.
हमारे सहयोगी शुरैह नियाज़ी बताते हैं कि मध्य प्रदेश में भी छात्र इस पूरे मामलें को लेकर बंटे हुए है.
भोपाल के यश परिहार आईआईटी-जेईई की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और वो भी परीक्षा में शामिल होंगे. लेकिन उनके लिए यही परेशानी है कि परीक्षा के दौरान किस तरह से सावधानी बरती जाएगी ताकि छात्र किसी भी तरह से संक्रमित न हो.

उन्होंने कहा, "परीक्षा देने के लिए बाहर से आने वाले बच्चों को कई दिक़्क़तों का सामना करना पड़ेगा. उनके लिए परीक्षा केंद्र तक पहुंचना भी आसान नहीं होगा."
यश पूछते हैं कि अगर परीक्षा के दौरान कोई छात्र संक्रमित होता है तो इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा?
मध्य प्रदेश के लिए परेशानी यह भी है कि यहां पर कई इलाकों में लगातार हो रही बरसात की वजह से बाढ़ के हालात हैं. कई क्षेत्रों का संपर्क टूटा हुआ है. इसलिए छात्रों का परीक्षा केंद्र पहुंचना और परीक्षा देना आसान नहीं है.

कोलकाता से बीबीसी के सहयोगी पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा डब्ल्यूबीजेईई में दूसरे स्थान पर रहने वाले दुर्गापुर के शुभम घोष जेईई की परीक्षा को लेकर असमंजस में हैं.
एक तरफ़ उनके सपने और करियर है तो दूसरी ओर कोरोना की चिंता. हालांकि इन चिंताओं के बावजूद इसके वो जेईई की परीक्षा देंगे.
शुभम ने कहा, ''इस परीक्षा को लेकर शुरू से ही असमंजस की स्थिति रही है. दो बार इसे टाला जा चुका है. अब भी इसके आयोजन पर कोरोना का गंभीर ख़तरा मंडरा रहा है. इससे एकाग्रता भंग होती है. लेकिन फिर भी मैं यह परीक्षा देने जाऊंगा. इसे और कुछ दिन टालना बेहतर होता. लेकिन वैसी हालत में पूरा साल बर्बाद होने का ख़तरा है. सरकार को छात्रों के परीक्षा केंद्र तक आने-जाने के लिए परिवहन के सुरक्षित साधनों का इंतजाम करना चाहिए था.''
वो कहते हैं, "मैं आईआईटी मुंबई से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करना चाहता हूं इसलिए इस परीक्षा में शामिल होना जरूरी है. मैंने पहले भी यह परीक्षा दी थी. लेकिन अबकी मुझे रैंकिग सुधरने की उम्मीद है ताकि आईआईटी में दाख़िला मिल सके."
शुभम ने बीबीसी हिंदी से कहा, "मेरे माता-पिता कोरोना काल में परीक्षा के आयोजन से चिंतित हैं लेकिन हमारे सामने कोई और विकल्प नहीं है. अपने लक्ष्य को पाने के लिए कुछ ख़तरा तो उठाना ही होगा. अगर सरकार और सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि परीक्षाओं के आयोजन में कोई ख़तरा नहीं है तो शायद ऐसा ही हो. राज्य में अब रिकवरी रेट बढ़ रहा है. यह कुछ राहत की बात है. हम कोविड-19 के सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हुए परीक्षा देंगे. हालांकि मन के किसी कोने में डर तो बना ही रहेगा."
शुभम कहते हैं कि उनके कई मित्र भी परीक्षा के आयोजन को लेकर चिंतित हैं.
वो कहते हैं, ''हम कर ही क्या सकते हैं? हमें करियर बनाने के लिए परीक्षा देनी ही होगी. इसके बिना साल तो बर्बाद होगा ही, अगले साल भी सफलता की कोई गारंटी नहीं रहेगी. इसकी वजह यह है कि इस साल विभिन्न वजहों से इस परीक्षा में शामिल नहीं होने वाले छात्र भी अगले साल परीक्षा देंगे. इससे चुनौती बेहद कठिन हो जाएगी.''

रांची से बीबीसी के सहयोगी पत्रकार रवि प्रकाश के मुताबिक़ जमशेदपुर (झारखंड) के कदमा इलाके में रहने वाली अजीमा कौसर मानती हैं कि जेईई और नीट को कुछ वक़्त के लिए टाल दिया जाना चाहिए. वो जेईई की परीक्षार्थी हैं और आगामी तीन सितंबर को उनकी परीक्षा होनी है.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "मेरी परीक्षा जमशेदपुर में ही होनी है इसलिए मुझे कोई बड़ी परेशानी नहीं है. मैंने अपनी तैयारी पूरी कर ली है और अब मैं अंतिम दौर की पढ़ाई कर रही हूँ. जेइइ-मेंस की टेंशन खत्म होने के बाद आइआइटी एडवांस के अंतिम फ़ेज़ की तैयारी करनी है. वह परीक्षा भी सितंबर में ही होनी है. बची बात जेईई-मेंस की, तो मैं अपनी गाड़ी से परीक्षा देने जाऊंगी ताकि कोरोना संक्रमण का कोई ख़तरा नहीं रहे."
अजीम ये भी मानती हैं किहर बच्चे के पास अपनी गाड़ी हो या उनका सेंटर उनके ही शहर में हो, ऐसा संभव नहीं है.
उन्होंने कहा, ''मैं उन बच्चों के लिए चिंतित हूँ, जिनके पास अपनी गाड़ी नहीं है. उन्हें बहुत रिस्क लेकर एग्ज़ाम सेंटर तक आना होगा. इसलिए बेहतर होता कि ये परीक्षाएँ सितंबर में नहीं होतीं."

पटना से बीबीसी की सहयोगी पत्रकार सीटू तिवारी बताती हैं कि 21 साल के केशव आनंद मानसिक तौर पर बहुत परेशान हैं.
वो बिहार के समस्तीपुर ज़िले के खतुआहा गांव के हैं जहां 23 कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ सामने आ चुके हैं, जिनमें से एक की मौत भी हो चुकी है. ख़ुद केशव के चाचा, चाची और भाई कोरोना पॉज़िटिव हो गए हैं. उनके गांव पर सात दिन तक बाढ़ का ख़तरा भी मंडराता रहा था.
इस परिस्थिति में उनके लिए परीक्षा देना एक मुश्किल काम हो गया है. केशव का सेंटर उनके गांव से 150 किलोमीटर दूर पटना शहर में पड़ा है.
उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, "मैं कैसे पहुंच पाऊंगा अपने सेंटर? घर में कोई गाड़ी नहीं है. मैं मोटरसाइकिल चला कर भी नहीं जा सकता. फिर आपको परीक्षा देते वक्त मास्क लगाना पड़ेगा. जबकि मेरे लिए तो 15 मिनट भी मास्क लगाना दूभर है. ऐसा भी नहीं कि सिर्फ़ परीक्षा हॉल में ऐसा करना होगा. हमें तो घर से ही मास्क लगाकर निकलना पड़ेगा."
बिहार में नीट के 78,960 परीक्षार्थी हैं जिनके लिए 192 सेंटर पटना और गया शहर में बनाए गए हैं. वही जेईई की बात करें तो कुल 61,583 परीक्षार्थी हैं जिनके लिए 43 सेंटर हैं.
बिहार कोरोना और बाढ़ की दोहरी मार झेल रहा है. राज्य के 16 जिले की तकरीबन 80 लाख आबादी बाढ़ प्रभावित है. ऐसे में छात्रों के लिए परिवहन व्यवस्था से लेकर उनकी अपनी सुरक्षा एक बड़ी चिंता का विषय है.
केशव कहते हैं, "बिहार में कोई नियम कानून फ़ॉलो नहीं हो रहा है. मन बहुत डरा हुआ है. अपनी और परिवार की जान की सुरक्षा के साथ-साथ अपने भविष्य को लेकर भी चिंता है."

भुवनेश्वर से बीबीसी से सहयोगी पत्रकार सुब्रत कुमार पति बताते हैं कि ओडिशा में भी कोरोना के साथ बाढ़ की स्थिति है. कई जगहों में सड़कों पर पानी बह रहा है. इस स्थिति में हर परीक्षार्थी सेंटर में पहुंचना सम्भव नहीं है.
मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इस परीक्षा को स्थगित करने के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्री को चिट्ठी लिखा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फ़ोन पर बात भी की है.
जेईई परीक्षार्थी भुवनेश्वर की स्वयं सुधा कहती हैं, "यह समय एग्ज़ाम के लिए सही नहीं है. इसे स्थगित करना चाहिए. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में जाना और एग्ज़ाम सेंटर में एक साथ बैठना सुरक्षित नहीं है. बच्चों की मानसिक स्थिति भी ठीक नहीं रहेगी. एग्ज़ाम अथॉरिटी का कहना है की सुरक्षा का इंतज़ाम करेंगे लेकिन आते-जाते समय या एग्जाम के समय किसी को संक्रमण न हो, इसका गारंटी कौन लेगा?"
नीट परीक्षा देने जा रहे दसपल्ला के चन्दन कुमार साहू का सेंटर 150 किलोमीटर दूर भुबनेश्वर में है. चंदन अस्थमा के मरीज़ हैं. उन्हें भी एग्जाम सेंटर जाने में डर लग रहा है.

वो कहते हैं, "सरकार ने बस के ज़रिए बच्चों को सेंटर पहुँचाने की बात कही है. लेकिन एक साथ 40-50 बच्चों का बस में जाना संक्रमण फैला सकता है. ओडिशा में अभी बाढ़ की स्थिति है. किसी का घर टूटा हुआ होगा, किसी के घर में पानी होगा, किसी को दो-तीन दिनों से खाना नहीं मिला होगा. मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने से परीक्षा देना भी मुश्किल है."

असम से बीबीसी से सहयोगी दिलीप शर्मा बताते हैं कि आईआईटी-जेईई परीक्षा की तैयारी कर रहे असम के तिनसुकिया शहर में रहने वाले अंशुल अग्रवाल ने बीबीसी से कहा है कि कोविड संक्रमण के कारण छात्रों के सामने अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
वो कहते हैं, ''मेरी परीक्षा चार सितंबर को है और अब मीडिया में ख़बर आ रही है कि असम सरकार राज्य में कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण 31 अगस्त के बाद फिर से लॉकडाउन करने की बात सोच रही है. अगर ऐसा हुआ तो मेरे लिए अपने परीक्षा सेंटर डिब्रूगढ़ तक पहुँचना मुश्किल हो जाएगा.''
अंशुल कहते हैं, ''एडमिट कार्ड पर सुबह सात बजे परीक्षा सेंटर पहुंचने की बात लिखी हुई है और नौ बजे से परीक्षा शुरू होगी. इसके अलावा परीक्षा सेंटर में पूरी सावधानी के साथ जाना होगा. इन सारी बातों से मुझे बहुत चिंता हो रही है. कुछ भी सामान्य नहीं लग रहा है."
नई दिल्ली के आरके पुरम स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल से 12 वीं पास करने वाले अंशुल कोटा में जेईई की तैयारी कर रहें थे लेकिन कोरोना के कारण मार्च में हुए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने उनकी सारी योजना पर पानी फेर दिया.
वो कहते हैं, "कोटा में तैयारी ठीक चल रही थी लेकिन लॉकडाउन के कारण सबकुछ बंद हो गया. चार दिन बस में सफर कर मैं अपने घर तिनसुकिया पहुंचा था. फिर परीक्षा स्थगित करने को लेकर काफी दिनों तक अनिश्चितता का माहौल रहा. इन सबका मेरी पढ़ाई पर काफी असर पड़ा है. क्योंकि 12वीं क्लास में 93 फीसदी नंबर आने के बाद मैंने जेईई की तैयारी करने के लिए एक साल पहले ही ड्राप ले लिया था. अब मैं अपना एक और अकादमिक साल बर्बाद करना नहीं चाहता. वैसे भी आईआईटी में सीटें लिमिटेड हैं और अगर परीक्षा अगले साल हुई तो छात्रों की संख्या भी ज्यादा होगी. कोविड के इस माहौल में अलग-अलग जगहों से आने वाले छात्रों के साथ परीक्षा में बैठने में जोखिम तो है लेकिन और कोई विकल्प भी नहीं है."
जेईई और नीट परीक्षा आयोजित कराने या पोस्टपॉन्ड करने को लेकर विवाद जारी है. केंद्र सरकार निर्धारित तिथियों पर परीक्षा कराने की बात कह रही है, जबकि विपक्ष की मांग है कि कोरोना के चलते परीक्षा को आगे बढ़ाना चाहिए.

जयपुर सेबीबीसी के सहयोगी पत्रकार मोहर सिंह मीणा के मुताबिक़ नीट की परीक्षार्थी युक्ता का कहना है कि कोरोना के दौरान सेंटर पर कौन स्टूडेंट कहां से आया है, ये मालूम नहीं होगा. ऐसे में संक्रमण का ख़तरा है.
वो कहती हैं कि परीक्षा के दौरान मास्क लगाने से और भय के माहौल में परफ़ॉर्मेंस भी प्रभावित होगी.
युक्ता की मांग है कि परीक्षा स्थगित कर दी जाए, जिससे कोरोना का ख़तरा कम होने पर भयमुक्त माहौल में परीक्षा दी जा सके.

जेईई के परीक्षार्थी सुशांत चौधरी मानते हैं कि अप्रैल और जुलाई में परीक्षा स्थगित कर दी गई थी. अब परीक्षा समय पर होनी चाहिए. हालांकि, कोरोना का भय बना हुआ है, लेकिन इलाज नहीं आने तक परीक्षा आयोजित नहीं करना कोई समाधान नहीं है.
सुशांत कहते हैं कि हम परीक्षा के लिए तैयार हैं. अब यदि फिर परीक्षा स्थगित हुई तो हमारा हौसला कमज़ोर होगा.